हजारों दर्द एक साथ
खाली किताब की तरह था ,दिल मेरा !
जिस पर न लिख सका कोई अपनी कथा !
दूसरों का दर्द तो हमने समझा
लेकिन मेरा दर्द न समझ सका कोई
नादान थे वे लोग
जो ना समझ सके मेरे दर्द को
एक हीरे को पत्थर समझ कर
भूल गये वे लोग
जिस पर न लिख सका कोई अपनी कथा !
जिनको बताई थी हमने आंशुओं की कीमत
आज वे ही लोग भूल गये मेरे आंशुओं को
मुझे छोड़ गये तन्हा अकेला
महफ़िल में भी दिल मेरा
अकेला रोता रहा बार -बार
और करता रहा एक ही सवाल
तू अब भी न जान सका
अपनें और दूसरों के पर्क को मेरे यार
बस इसी कारण आज तू
महफ़िल में भी अकेला हैं तू मेरे यार
खाली किताब की तरह था ,दिल मेरा !
जिस पर न लिख सका कोई अपनी कथा !
समझता रहा जितेंद्र ब्रजवासी मैं तुझे बार-बार।
इस दुनिया में इंसानों से ज्यादा पैसों की कीमत हैं मेरे यार।
आज जो रिश्ते हैं! दूर तुझसे मेरे यार।
आज कमाले इतने पैसे तू.......
कल वे ही रिश्ते भागकर आयेगें तेरे पास।
खाली किताब की तरह था ,दिल मेरा !
जिस पर न लिख सका कोई अपनी कथा !
Bilkul sahi kahaa aapne . Sir
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