घर की नौकरानी - A Real Motivational story

 घर की नौकरानी - A Real Motivational story -;

🔷कामवाली बाई (घर की नौकरानी) 🔷

यह बात कुछ दिनों पुरानी है, जब स्कूल बस 🚌 की हड़ताल चल रही थी ।

मेरे पति अपने Business की एक important meeting में बिजी थे, इसलिए मेरे 5 साल के बेटे को स्कूल से लाने के लिए मुझे two wheeler 🛵पर जाना पड़ा ।

जब मैं two wheeler🛵 से घर की ओर वापस आ रही थी, तब अचानक रास्ते में मेरा बैलेंस बिगड़ा और मैं एवं मेरा बेटा हम दोनों गाड़ी सहित नीचे गिर गए ।

मेरे शरीर पर कई खरोंच आए, लेकिन  प्रभु की कृपा से मेरे बेटे को कहीं खरोंच तक नहीं आई ।

हमें नीचे गिरा देखकर आसपास के कुछ लोग इकट्ठे हो गए और उन्होंने हमारी मदद करनी चाही|

तभी मेरी कामवाली बाई राधा ने मुझे दूर से ही देख लिया और वह दौड़ी चली आई । उसने मुझे सहारा देकर  खड़ा किया, और अपने एक परिचित की सहायता से मेरी गाड़ी एक दुकान पर खड़ी करवा दी ।

वह मुझे कंधे का सहारा देकर अपने घर ले गई जो पास में ही था ।

जैसे ही हम घर पहुँचे, वैसे ही राधा के दोनों बच्चे 👫 हमारे पास आ गए ।

राधा ने अपने पल्लू से  बंधा हुआ 50 का नोट निकाला और अपने बेटे राजू को दूध, बैंडेज एवं एंटीसेप्टिक क्रीम लेने के लिए भेजा तथा अपनी बेटी रानी को पानी गर्म करने का बोला । उसने मुझे कुर्सी पर बिठाया तथा मटके का ठंडा जल पिलाया । इतने में पानी गर्म हो गया था ।

वह मुझे लेकर बाथरूम में गई और वहाँ पर उसने मेरे सारे जख्मों को गर्म पानी से अच्छी तरह से धोकर साफ किया और बाद में वह उठकर बाहर गई ।

वहाँ से वह एक नया टावेल और एक नया गाउन मेरे लिए लेकर आई ।

उसने टावेल से मेरा पूरा बदन पोंछा तथा जहाँ आवश्यक था, वहाँ बैंडेज लगाई । साथ ही जहाँ मामूली चोट थी, वहाँ पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाया । 

अब मुझे कुछ राहत महसूस हो रही थी । उसने मुझे पहनने के लिए नया गाउन दिया वह बोली "यह गाउन मैंने कुछ दिन पहले ही खरीदा था, लेकिन आज तक नहीं पहना मैडम आप यही पहन लीजिए तथा थोड़ी देर आप रेस्ट कर लीजिए" ।

"आपके कपड़े बहुत गंदे हो गये हैं, हम इन्हें धो कर सुखा देंगे, फिर आप अपने कपड़े बदल लेना।"

मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी । मैं गाउन पहनकर बाथरुम से बाहर आई । उसने झटपट अलमारी में से एक नया चद्दर निकाला और पलंग पर बिछाकर बोली आप थोड़ी देर यहीं आराम कर लीजिए ।

इतने में बिटिया ने दूध भी गर्म कर दिया था । राधा ने दूध में दो चम्मच हल्दी मिलाई और मुझे पीने को दिया और बड़े विश्वास से कहा– "मैडम! आप यह दूध पी लीजिए,  आपके सारे जख्म भर जाएंगे ।


लेकिन अब मेरा ध्यान तन पर था ही नहीं, बल्कि मेरे अपने मन पर था ।

मेरे मन के सारे जख्म एक एक कर के हरे हो रहे थे । मैं सोच रही थी "कहाँ मैं और कहाँ यह राधा ?"

जिस राधा को मैं  फटे–पुराने कपड़े देती थी, उसने आज मुझे नया टावेल दिया, नया गाउन दिया और मेरे लिए नई बेडशीट लगाई । धन्य है यह राधा ।

एक तरफ मेरे दिमाग में यह सब चल रहा था, तब दूसरी तरफ  राधा गरम–गरम चपाती और आलू की सब्जी बना रही थी । थोड़ी देर में वह थाली लगाकर ले आई । वह बोली "आप और बेटा दोनों खाना खा लीजिए" ।

राधा को मालूम था कि मेरा बेटा आलू की सब्जी ही पसंद करता है और उसे गरम गरम रोटी चाहिए । इसलिए उसने रानी से तैयार करवा दी थी ।


रानी बड़े प्यार से मेरे बेटे को आलू की सब्जी और रोटी खिला रही थी और मैं इधर प्रायश्चित की आग में जल रही थी ।

सोच रही थी कि जब भी इसका बेटा राजू मेरे घर आता था, मैं उसे एक तरफ बिठा देती थी, उसको नफरत से देखती थी और इन लोगों के मन में हमारे प्रति कितना प्रेम है  ?

यह सब सोच–सोच कर मैं आत्मग्लानि से भरी जा रही थी । मेरा मन दुख और पश्चाताप से भर गया था ।तभी मेरी नज़र राजू के पैरों पर गई जो लंगड़ा कर चल रहा था ।

मैंने राधा से पूछा– "राधा इसके पैर को क्या हो गया तुमने इलाज नहीं करवाया ?" राधा ने बड़े दुख भरे शब्दों में कहा– "मैडम! इसके पैर का ऑपरेशन करवाना है, जिसका खर्च करीबन ₹10000  है" ।

'मैंने और राजू के पापा ने रात दिन मेहनत कर के ₹5000 तो जोड़ लिए हैं, ₹5000 की और आवश्यकता है । हमने बहुत कोशिश की लेकिन कहीं से मिल नहीं सके ।"

"ठीक है, भगवान का भरोसा है, जब आएंगे तब इलाज हो जाएगा । फिर हम लोग कर ही क्या सकते हैं?"

तभी मुझे ख्याल आया कि राधा ने एक बार मुझसे ₹5000 अग्रिम मांगे थे और मैंने बहाना बनाकर मना कर दिया था ।

आज वही राधा अपने पल्लू में बंधे सारे रुपए हम पर खर्च कर के खुश थी और हम उसको, पैसे होते हुए भी मुकर गए थे और सोच रहे थे कि बला टली ।

आज मुझे पता चला कि उस वक्त इन लोगों को पैसों की कितनी सख्त आवश्यकता थी ।

मैं अपनी ही नजरों में गिरती ही चली जा रही थी ।

अब मुझे अपने शारीरिक जख्मों की चिंता बिल्कुल नहीं थी, बल्कि उन जख्मों की चिंता थी जो मेरी आत्मा को मैंने ही लगाए थे । मैंने दृढ़ निश्चय किया कि जो हुआ सो हुआ, लेकिन आगे जो होगा वह सर्वश्रेष्ठ ही होगा ।

मैंने उसी वक्त राधा के घर में जिन–जिन चीजों का अभाव था, उसकी एक लिस्ट अपने दिमाग में तैयार कर ली । थोड़ी देर में मैं लगभग ठीक हो गई ।

मैंने अपने कपड़े चेंज किए,  लेकिन वह गाउन मैंने अपने पास ही रखा और राधा को बोला– "यह गाऊन अब तुम्हें कभी भी नहीं दूंगी, यह गाऊन मेरी जिंदगी का सबसे अमूल्य तोहफा है" ।

राधा बोली मैडम यह तो बहुत हल्की रेंज का है । राधा की बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था । मैं घर आ गई लेकिन रात भर सो नहीं पाई ।

मैंने अपनी सहेली के मिस्टर, जो की हड्डी रोग विशेषज्ञ थे, उनसे राजू के लिए अगले दिन का अपॉइंटमेंट लिया । दूसरे दिन मेरी किटी पार्टी भी थी । लेकिन मैंने वह पार्टी कैंसिल कर दी और राधा की जरूरत का सारा सामान खरीदा  और वह सामान लेकर मैं राधा के घर पहुँच गई ।राधा  समझ ही नहीं पा रही थी कि इतना सारा सामान एक साथ मैं उसके घर में क्यों लेकर गई ?

मैंने धीरे से उसको पास में बिठाया और बोला मुझे मैडम मत कहो मुझे अपनी बहन ही समझो, यह सारा सामान मैं तुम्हारे लिए नहीं लाई हूँ, मेरे इन दोनों प्यारे बच्चों के लिए लाई हूँ और हाँ! मैंने राजू के लिए एक अच्छे डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया है, हम को शाम 7:00 बजे उसको दिखाने चलना है, उसका ऑपरेशन जल्द से जल्द करवा लेंगे और तब राजू भी अच्छी तरह से दौड़ने लग जाएगा । राधा यह बात सुनकर खुशी के मारे रो पड़ी लेकिन यह भी कहती रही कि मैडम यह सब आप क्यों कर रही हैं ? हम बहुत छोटे लोग हैं, हमारे यहाँ तो यह सब चलता ही रहता है । वह मेरे पैरों में गिरने लगी ।

यह सब सुनकर और देखकर मेरा मन भी द्रवित हो उठा और मेरी आँखों से भी आँसू के झरने फूट पड़े । मैंने उसको दोनों हाथों से ऊपर उठाया और गले लगा लिया, मैंने बोला बहन रोने की जरूरत नहीं है, अब इस घर की सारी जवाबदारी मेरी है । मैंने मन ही मन कहा राधा तुम क्या जानती हो कि मैं कितनी छोटी हूँ और तुम कितनी बड़ी हो ?आज तुम लोगों के कारण ही मेरी आँखें खुल सकी है । मेरे पास इतना सब कुछ होते हुए भी मैं भगवान से और अधिक की भीख मांगती रही, मैंने कभी संतोष का अनुभव नहीं किया ।

लेकिन आज मैंने जाना कि असली खुशी पाने में नहीं देने में है ।❤️

मैं परमपिता परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद दे रही थी, कि आज उन्होंने मेरी आँखें खोल दी । मेरे पास जो कुछ था, वह बहुत अधिक था, उसके लिए मैंने परमात्मा को बार-बार अपने ऊपर उपकार माना तथा उस धन को जरूरतमंद लोगों के बीच खर्च करने का पक्का निर्णय किया ।

( किसी के व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित : प्रेरक सत्य कथा )


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